भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में हर जीव को महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे यहां तो नदी को भी मां मानते है और विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों को भी किसी न किसी रूप से महत्व दिया जाता है। गीता जी में श्री कृष्ण ने कहा है कि वे हर कण में है तथा प्रकृति उनका ही रूप है इसका मतलब उसको नुकसान पहुंचाना सीधे भगवान को नुकसान पहुंचाने के समान है। कर्म के लिए श्री कृष्ण ने कहां है कि वह हर कार्य जो हरेक के भले को ध्यान में रख कर किया जाता है को ही कर्म माना जाता है। निषिद्ध कर्म करना ही विकर्म है और ये निषिद्ध कर्म क्या है? असत्य, कपट, हिंसा इत्यादि पर आधारित कर्मों को निषिद्ध माना गया है। मेरी जानकारी के अनुसार अन्य धर्मों मुख्यत: इस्लाम या ईसाइयों में कर्म का यह सिद्धान्त नहीं माना जाता, वे अन्य जीवों और प्रकृति को केवल उपभोग की वस्तु मानते है।
इतिहासकारों के अनुसार पटाखे भारत में इस्लामीक आक्रांताओं द्वारा लाये गए थे हालांकि कई लोग यह कहते है कि इसका जिक्र चाणक्य ने किया है लेकिन ऐसा नहीं है। कई जगह श्री राम द्वारा आग्नेय अस्त्रों के उपयोग को भी पटाखों से जोड़ा जाता है पर मेरे मत से वे देवीय अस्त्र थे न की साधारण पटाखे। समय के साथ भारतीय संस्कृति में मुख्य रूप से दीपावली में इसका उपयोग किया जाने लगा। शायद उस वक्त किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि पटाखों से पर्यावरण और अन्य जीवों पर क्या असर पड़ रहा है। या संभव है कि इसका उपयोग बहुत कम होता था इसलिए नुकसान समझ ही नहीं आया। इसी प्रकार से सुनने में आया था कि पितृ पक्ष के वक्त जो हमारे पितृ गण आते है वे कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन वापस अपने अपने लोक लौट जाते है और उन्हें अंधेरी रात में समस्या नहीं हो इसलिए पटाखे जलाए जाते है। क्या विदेशी आक्रांताओं के द्वारा पटाखे लाने के पूर्व हम दीपावली नहीं मनाते थे या हमारे कई पितृगण यहीं भटकते रह जाते थे?
मुस्लिम या अन्य विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा पटाखों का उपयोग किया जाता था लेकिन उनकी संस्कृति में क्योंकि अन्य जीवों को कोई महत्व भारतीय संस्कृति और धर्म के समान नहीं दिया जाता इसलिए उनको कोई फर्क नहीं पड़ा और न ही वे इस विषय पर सोचेंगे। हां, हम सनातनियों के लिए यह हमारे धर्म और संस्कृति से हमें दूर जरूर कर रहा है क्योंकि इसके कारण हम पूरी पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे है जो हमारे "वसुधैव कुटुम्बकम्" तथा अहिंसा के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत है।
मेरा विचार है कि केवल वे ही पटाखों का उपयोग करेंगे जो सनातन के विरुद्ध है और अन्य धर्मों को सनातन से उच्च मानते है। जैसे हमारे द्वारा बाल विवाह की परम्परा को खत्म किया गया उसी तरह इस धर्म विपरीत कार्य को भी बंद करना चाहिए। जब दीपावली में पटाखों के खिलाफ लिखा जाता है तो लोगों को दूसरे धर्म दिखने लगते है, उनकी वे रीतियां जिनको हम कुरीति मानते है दिखने लगते है जैसे जीवों को मारना। सबसे हास्यास्पद है उनका कहना अगर दूसरे धर्म वाले कर सकते है तो हम क्यों नहीं या क्या सारे संसार का ठेका हमने ले रखा है। क्या "वसुधैव कुटुम्बकम्" सनातन का हिस्सा है या अन्य धर्मों का? क्या श्री गीता जी में भगवान कृष्ण ने जो कहां वह सनातन का हिस्सा है या अन्य धर्म से संबंधित? अगर आपको अन्य धर्मों के अनुसार जीव हत्या और पर्यावरण / पृथ्वी को नुकसान पहुंचाना है तो उसी धर्म को अपना लो । कई बार देखा की कई संत महात्मा और प्रवचनकर्ता भी पटाखों को जलाने को ले कर बोलते है की यह सनातन विरोधी गतिविधि नहीं है, उनसे मेरा सादर अनुरोध है की कृपया अपने वक्तव्य को वापस लें और लोगों को सनातन के पथ से विमुख होने से बचाएं। मैंने पिछले करीब 20 वर्षों से पटाखे जलाना और प्लास्टिक की पन्नियों का उपयोग छोड़ दिया है और सभी से अनुरोध है कृपया यह अकर्म छोड़ देवें और सत्य सनातन को अपनाए।
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